मकर संक्रांति 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रविवार, 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हिंदू पंचांग सूर्य, चंद्र और नक्षत्रों पर आधारित है। सूर्यदेव हमारे लिए विशेष महत्व रखते हैं, इसलिए सभी संक्रांति में मकर संक्रांति को अति महत्वपूर्ण माना जाता है। मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सूर्यदेव उत्तरायण की ओर प्रस्थान प्रारंभ होंगे। इसी के साथ खरमास की समाप्ति होगी और विवाह आदि शुभ कार्यों की शुरुआत होगी।
वर्ष भर में 12 सूर्य संक्रांति होती हैं और इस समय को सौर मास भी कहते हैं। इन 12 संक्रांतियों में चार को महत्वपूर्ण माना गया है, इनमें से सबसे खास मकर संक्रांति है जिस दिन सूर्य राशि धनु को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर के अलावा सूर्य जब मेष, तुला और कर्क राशि में गमन करता है, तो ये संक्रांति भी खास जानी जाती हैं।
जिस तरह चंद्र वर्ष माह के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। इसी तरह एक सूर्य वर्ष यानी एक साल के भी दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। ज्योतिष के अनुसार सूर्य छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। उत्तरायण को विश्व का दिन माना जाता है और दक्षिणायन को पितरों आदि का। मकर संक्रांति से शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है।
ग्रसित के अनुसार, जब सूर्यदेव पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते हैं, तब सूर्य की किरणें पर्यावरण और शांति को बल देती हैं। सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतन, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है, क्योंकि यही वो कारक हैं जिससे हमें जीवन में सफलता मिलती है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण का महत्व उल्लेख करते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है, ऐसे लोगों को सीधे ब्रह्म की प्राप्ति है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर भगवान सूर्य अपने भगवान पुत्र शनि के पास जाते हैं, उस समय शनि भगवान राशि मकर का प्रतिनिधित्व करते हैं। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ संबंध बनाने के लिए मकर संक्रांति के बावजूद मतभेदों को महत्व दिया गया। महाभारत से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाणों की सज्जा पर लेटे पितामह भीष्म को यह वरदान प्राप्त था कि वे अपनी इच्छा से मृत्यु को प्राप्त होंगे। तब वे उत्तरायण के दिन प्रतीक्षा कर रहे थे और इस दिन वे अपनी आँखें बंद किए हुए थे और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के गरीब से सागर में जा मिले थे। ही साथ महाराज भगीरथ ने अपने महत्वाकांक्षी मोक्ष के लिए इस दिन त्रयस्थ किया था। यही कारण है कि मकर संक्रांति को लेकर गंगासागर में हर साल मेला लगता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस अवसर को अत्यंत शुभ व पवित्र माना है। उपनिषदों में इस पर्व को ‘देव दान’ भी कहा गया है। इस दिन से देवलोक में दिन की शुरुआत होती है, इसलिए इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं, इसलिए इस अवसर पर दान, धर्म व जप-तप करना उत्तम माना जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार, श्री कृष्ण ने सूर्य को विश्व के प्रत्यक्ष देवता के रूप में वर्णित किया है, जिसमें कहा गया है कि इससे कोई दूसरा देवता नहीं है, संपूर्ण जगत इन क्षेत्रों से संबंधित है और अंत में विलीन हो जाएगा, जिसका उदय होने से सारा जगत चेष्टावान होता है है।
शुभ मुहूर्त
- सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश : शनिवार, 14 जनवरी को अपराहन 08:45 AM.
- मकर संक्रांति पुण्यकाल : रविवार, 15 जनवरी को पूर्वान्ह 06:49 से अपराह्न 05:40 बजे तक।
मकर संक्रांति महापुण्यकाल : 15 जनवरी को पूर्वाह्न 07:15 से पूर्वाह्न 09:06 बजे तक.
ज्योतिषी सन्तोषाचार्य, ज्योतिष एवं ऋग्द्ध विशेषज्ञ