केडी जाधव अपने पांच भाईयों में सबसे छोटे थे। पहलवानी के साथ साथ इनको तैराकी भी आती थी। गूगल के अनुसार 10 साल की छोटी उम्र से ही यह अपने पिताजी के साथ पहलवानी के गुर सीखने लगे थे और वहीं से इनकी पहलवानी के करियर की शुरुआत हुई। हेड लॉकिंग के माहिर केडी जाधव अपने से कई किलो भारी पहलवान को उठाकर जमीन पर पटक देते थे। अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती फॉर्मेट में वे भले ही नए थे लेकिन पहली बार में ही उन्होंने इस फॉर्मेट में छठा स्थान हासिल किया था। उस वक्त तक भारत में ऐसा किसी ने नहीं किया था।
ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद वह गोल्ड के लिए तैयारी कर रहे थे। लेकिन किस्मत ने उनका यहां पर साथ नहीं दिया और मैच से कुछ समय पहले ही उनको घुटने में चोट लग गई जिसके कारण वो गोल्ड मेडल के लिए नहीं खेल सके। बल्कि यहां तक कि उनका घुटना इस तरह से चोटिल हुआ था कि उसके बाद वो आगे खेल ही नहीं पाए। उसके बाद वो खेल करियर से हट गए और एक पुलिस सर्विस में अपना योगदान दिया। 14 अगस्त 1984 को उनका जीवनकाल समाप्त हो गया। कुश्ती में उनके योगदान के लिए सन् 2000 में उनको अर्जुन पुरस्कार मिला लेकिन यह उनकी मृत्यु के लगभग दो दशक बाद दिया गया।
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