गंगासागर से शिव कुमार रौत। हम चाहे चांद पर पहुंच गए हों। मंगल को मैंने देखा है। यह पूरी सफलता ‘गोदान’ के बिना बेमानी है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वस्त्र गंगासागर मेले में किया जाता है। इसके लिए दूर-दूर से पंडित-पुजारियों का दल सागरद्वीप आता है। इस बार भी पंडित गाय-बछड़ों के साथ भारी संख्या में तट पर मौजूद हैं। मलाल इस बात का है कि गोदान देखे जाने वाले यजमान नादारद हैं। इस बार पंडित-पुजारी बेहद निराश हैं।
तीन दिन से करवा रहे हैं गोदान, अदानी एक पहली नहीं
गए के पंडित विकास तिवारी दृष्टांत हैं, ‘बिहार से गाय लेकर यहां नहीं आ सकते। इसलिए सब्सक्राइब से गाय पर लिए हैं। हज़ार रुपये में. पिछले तीन दिनों से गोदान करवा रहे हैं, लेकिन सिर्फ किराए का ही पैसा पाते हैं। आमदनी एक रिश्त भी नहीं हुई है।’
भाड़े पर गाय लेकर गोदान करें रहे बिहार के पंडित
पिछले 17 सालों से गंगासागर आ रहे गुड्डू टाइटस रहे हैं, ‘बड़ी मुश्किल से पैसे का अख्तियार किया। दो हजार रुपये में दो दिन के लिए बछिया हैक लिया है। परगणक गोदान नहीं कर रहे हैं। वह स्नान करके तुरंत निकल जा रहे हैं। रोकने पर कहते हैं कि तट की मिट्टी कितनी दलदली है। यहां पैर रखना मुश्किल हो रहा है, गोदान कैसे करें। अगली बार देखिएगा?’
पंडित बोले- नहीं बनने वाला सागर आना
गोदान वाले सभी पंडितों का कहना है कि दो साल के बाद ऐसी जगी थी कि कुछ कमाई होगी। लेकिन, कोराना से भी बदतर हालात हैं। भीड़ है, पर उससे हमें भी कुछ फ़ायदा नहीं हो रहा है। प्रशासन को हमें पंडितों की रोजी-रोटी का भी ख्याल रखना चाहिए। पहले तो यहां आने पर दो दिन में अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी, लेकिन इस बार तो किसी तरह आने-जाने का खर्च ही बढ़ता पाया है।
बिहार के इन 5 नेटवर्क से गंगासागर पंडित आते हैं
विदित हो कि गंगासागर में गोदान संदर्भित मुख्य रूप से बिहार के लिए, जमुई, लखीसराय, किउल और सोनपुर से पंडित आते हैं। यहां आकर उन्हें मेले का पास बनाना पड़ता है। फिर रहने-खाने का अख्तियार भी खुद को अधिकृत करता है। ज्ञात हो कि गंगासागर में कुल पांच घाट हैं। इन सभी घाटों की स्थिति कमोबेश एक ही है। सभी घाट दलदली मिट्टी से भरे हुए हैं।